यह गजब संयोग है कि भारत और पाकिस्तान दोनों इस वक्त लोकतंत्र की अग्निपरीक्षा से एक साथ गुजर रहे हैं। भारत में लोकतंत्र की सुदीर्घ परंपरा रही है और पाकिस्तान लोकतंत्र के लिए संघर्ष करता आया है, यह दोनों देशों के बीच का बुनियादी फर्क है। लेकिन दोनों देशों में एक बड़ी समानता ये है कि सत्ता पर काबिज होने के लिए पाकिस्तान में भी षड्यंत्र रचे जा रहे हैं और भारत में भी ऐसा ही हो रहा है। चंडीगढ़ का मेयर चुनाव इसका ताजा उदाहरण है। पहले इस चुनाव को केवल इस वजह से टाला गया कि पीठासीन अधिकारी बीमार थे। इसके बाद 30 जनवरी को जब चुनाव हुए तो आप और कांग्रेस का गठबंधन हार गया, जबकि भाजपा को आसान जीत मिल गई। इस चुनाव में आठ मतपत्रों को खारिज किया गया था और आप ने आरोप लगाए थे कि रिटर्निंग अधिकारी अनिल मसीह ने ही मतपत्रों पर निशान बनाए थे।
उनका एक वीडियो फुटेज भी सामने आया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लोकतंत्र की हत्या करार दिया था और सोमवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट में अनिल मसीह ने स्वीकार भी किया कि उन्होंने आठ मतपत्रों पर निशान लगाए थे। इसके बाद मंगलवार को अदालत ने मतपत्रों की फिर से गिनती के आदेश दिए हैं, इसमें खारिज किए सभी आठ मतपत्र भी शामिल थे, जिससे आप के कुलदीप कुमार मेयर घोषित हो गए। चंडीगढ़ मेयर चुनाव देश में होने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों से बहुत छोटा है। यहां पर विपक्ष ने हिम्मत नहीं हारी और इंसाफ के लिए लड़ाई जारी रखी, तो सच सामने आ गया। लेकिन इससे निष्पक्ष और पारदर्शी चुनावों पर प्रश्नचिह्न तो लग ही गए हैं। और सबसे बड़ा सवालिया निशान तो इस बात पर है कि क्या सत्ता के दबाव में स्वतंत्र संस्थाओं और अधिकारियों को बेईमानी करने दी जा रही है। हाल ही में पाकिस्तान में हुए चुनाव में भी ऐसी ही बेईमानी हुई, लेकिन वहां एक अधिकारी ने सामने आकर अपनी बेईमानी न केवल कबूल की है, बल्कि खुद के लिए सजा की मांग भी कर दी।
पाकिस्तान में आम चुनाव हुए 10 से अधिक दिन हो गए हैं, लेकिन किसी भी दल को पूर्ण बहुमत न मिलने के कारण अब तक सरकार का गठन नहीं हुआ है। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी पीटीआई के लोगों ने इस बार निर्दलीय चुनाव लड़ा, लेकिन नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएलएन और बिलावल भुट्टो की पार्टी पीपीपी से ज्यादा वोट हासिल किए। फिर भी पीटीआई सरकार नहीं बना सकी, न ही अब तक नवाज शरीफ और बिलावल भुट्टो कोई समझौता कर पाए हैं। इस बीच चुनाव में धांधली के आरोप भी लगे थे और कहा गया था कि जीते हुए कई निर्दलीय प्रत्याशियों को हारा हुआ घोषित किया गया है। इससे पहले कि इस मामले की कोई जांच होती और चुनाव आयोग को क्लीन चिट मिलती, रावलपिंडी के कमिश्नर लियाकत अली चट्टा ने बड़ा खुलासा किया है। उन्होंने कहा कि हमने 13 ऐसे निर्दलीय कैंडिडेट्स जो 70 से 80 हजार वोटों से आगे चल रहे थे, उन्हें धांधली कर हरवा दिया। रावलपिंडी के क्रिकेट स्टेडियम में मीडिया से बात करते हुए लियाकत अली चट्टा ने कहा कि वो इस वजह से सो नहीं पा रहे हैं कि उन्होंने 'देश की पीठ में छुरा घोंपा हैÓ। मैंने जो अन्याय किया है उसके लिए मुझे दंडित किया जाना चाहिए और इस अन्याय में शामिल अन्य लोगों को भी सजा होनी चाहिए। कमिश्नर चट्टा ने यह भी कहा कि वे 1971 वाला दौर फिर नहीं देखना चाहते हैं। गौरतलब है कि 1971 में ही बांग्लादेश पाकिस्तान से अलग हुआ था, क्योंकि तब भी शेख मुजीबुर्ररहमान को चुनाव में जीत हासिल करने के बावजूद पाकिस्तान की सैन्य हुकूमत सत्ता सौंपना नहीं चाहती थी। इसके बाद जो कुछ हुआ, उस इतिहास से सब वाकिफ हैं।
पाकिस्तान का न्यायतंत्र, सैन्य तंत्र और सत्ता पर काबिज होने की इच्छा लिए राजनेता भले इस खूनी इतिहास से कोई सबक न लेना चाहें, लेकिन कमिश्नर चट्टा ने एक रास्ता उन लोगों को दिखा दिया है, जो ईमानदारी के साथ लोकतंत्र के रास्ते पर चलना चाहते हैं। यह याद रखना चाहिए कि आजादी के 75-76 बरसों में पाकिस्तान लोकतंत्र के लिए तरसता रहा है, सैन्य तानाशाही ने वहां लोकतंत्र की जड़ों को बार-बार कुचला और दूरी ओर धार्मिक कट्टरता से लोकतंत्र बेड़ियों में जकड़ा गया। हालांकि वहां की अवाम इसके बावजूद लोकतंत्र की सत्ता स्थापित करने के लिए जूझती रही, उसने धर्म और सेना की सत्ता के आगे अपने जमीर का समर्पण नहीं किया। दूसरी ओर भारत ने आजादी के साथ ही लोकतंत्र का पौधा रोपा और 7 दशकों में इसे विशाल लहलहाते वृक्ष में तब्दील होते देखा। अफसोस इस बात का है कि अब अमृतकाल के नाम पर इस घने और मजबूत दरख्त की जड़ों में धर्मांधता और अधिनायकवाद का म_ा डाला जा रहा है। चंडीगढ़ के बाद बेईमानी के और नए गढ़ तैयार किए जा रहे हैं, जहां चुनाव प्रक्रिया से खिलवाड़ कर सत्ता की राह बनाई जा सके। कपट और धूर्तता से भरे इस रास्ते को तभी बंद किया जा सकता है जब प्रशासनिक ईमानदारी दिखाई जाए। जो काम रावलपिंडी में कमिश्नर लियाकत अली चट्टा ने किया है, क्या भारत के अधिकारी देश सेवा का वही जज्बा दिखा सकते हैं, यह एक बड़ा सवाल है।